15-12-05   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

“नये वर्ष में स्नेह और सहयोग की रूपरेखा स्टेज पर लाओ, हर एक को गुण और शक्तियों की गिफ्ट दो”

आज परमात्म बाप अपने चारों ओर के परमात्म प्यार के अधिकारी बच्चों को देख रहे हैं। यह परमात्म प्यार विश्व में कोटों में से कोई को प्राप्त होता है। यह परमात्म प्यार नि:स्वार्थ प्यार है क्योंकि एक परमात्मा पिता ही निराकार, निरहंकारी है। मनुष्य आत्मा शरीरधारी होने के कारण कोई न कोई स्वार्थ में आ ही जाती है। परमात्म बाप ही अपने बच्चों को ऐसा नि:स्वार्थ प्यार देते हैं। परमात्म प्यार ब्राह्मण जीवन का विशेष आधार है। ब्राह्मण जीवन का जीवनदान है। अगर ब्राह्मण जीवन में परमात्म प्यार का अनुभव कम है, तो प्यार के बिना जीवन रमणीक नहीं, सूखा जीवन हो जाता है। परमात्म प्यार ही जीवन में सदा साथ भी देता और साथी बन सदा सहयोगी रहता। जहाँ प्यार है, साथ है वहाँ सब कुछ बहुत सहज और सरल हो जाता है। मेहनत का अनुभव नहीं होता है। ऐसा अनुभव है ना! परमात्म प्यारे कोइ भी व्यक्ति वा साधनों की आकर्षण में नहीं आ सकते क्योंकि परमात्म आकर्षण, परमात्म प्यार ऐसा अनुभव कराता जो सदा प्यार के कारण लवलीन रहते हैं, जिसको लोगों ने परमात्मा में लीन होना समझ लिया। परमात्मा में लीन नहीं होता लेकिन परमात्म प्यार में लवलीन हो जाता।

बापदादा चारों आरे के बच्चों को देखतें हैं - परमात्म प्यारे तो सभी बने हैं लेकिन एक है लवली बच्चे दुसरे हैं लवलीन बच्चे। तो अपने आपसे पूछो लवली तो सभी हैं, लेकिन लवलीन कहाँ तक रहते हैं? लवलीन बच्चों की निशानी है वह सदा परमात्म फरमान में सहज चलते हैं। फरमान में भी रहते और देहभान से कुर्बान भी रहते हैं क्योंकि प्यार में कुर्बान होना मुश्किल नहीं है। सबसे पहला फरमान है - योगी भव, पवित्र भव। बाप का बच्चों से प्यार होने के कारण बाप बच्चों को मेहनत करते देख नहीं सकते क्योंकि बाप जानते हैं 63 जन्म बहुत मेहनत की, अभी यह अलौकिक जन्म मेहनत से मुक्त हो अतीन्द्रिय सुख की मौज मनाने का है। तो मौज मना रहे हो कि मेहनत करनी पड़ती है? प्यार में फरमान पर चलना मेहनत नहीं लगती। अगर मेहनत करनी पड़ती है तो प्यार की परसेन्टेज कम है। कहाँ न कहाँ प्यार में कुछ न कुछ लीकेज है। दो बातों की लीकेज महेनत कराती है - एक पुराने संस्कार का आकषर्ण्। संसार में सम्बन्ध, पदार्थ सब आ जाता है। और दूसरा- पुराने संस्कार की आकर्षण। यह पुराना संसार और पुराने संस्कार अपने तरफ आकर्षित कर देते हैं। तो परमात्म प्यार में परसेन्टेज हो जाती है। चेक करो - इन दोनों लीकेज से मुक्त हैं? याद करो आप आत्मा के अनादि संस्कार और आदि संस्कार क्या थे और अभी अन्त के ब्राह्मण जीवन के संस्कार क्या हैं? अनादि भी हैं, आदि भी हैं और अन्त में भी श्रेष्ठ संस्कार हैं। यह पुराने संस्कार मध्य के हैं, न अनादि हैं, न आदि हैं, न अन्त के हैं। लेकिन लक्ष्य क्या है सभी का? किसी भी बच्चे से पूछो तो एक ही उत्तर देते हैं लक्ष्य है बाप समान बनने का। यही है ना! है तो हाथ उठाओ। यही लक्ष्य है पक्का? या बीच-बीच में बदली हो जाती है? तो बाप बच्चों से पूछते हैं कि बाप और दादा दोनों के समान संस्कार कौन से हैं? सदा बाप हर आत्मा के प्रति उदारचित्त रहे हैं। हर आत्मा के प्रति स्नेह और सम्मान स्वरूप में सहयोगी रहे हैं। ऐसे स्वयं भी अपने को हर आत्मा के प्रति सहयोगी अनुभव करते हो? सहयोग दे तो सहयोगी बनें, नहीं। स्नेह दे तो स्नेही बनें, नहीं। जैसे ब्रह्मा बाप हर बच्चे के प्रति सहयोगी बनें, स्नेही बनें, ऐसे सर्व के सदा स्नेही और सहयोगी। इसको कहा जाता है समान बनना। अगर कोई भी बच्चे को मेहनत करनी पड़ती है, संस्कार परिवर्तन करने में, उसका कारण क्या है? ब्रह्मा बाप ने अपने ऊपर अटेन्शन रखा लेकिन मेहनत नहीं की, संस्कार परिवर्तन में मेहनत का कारण है - लवली बने हैं लवलीन नहीं बने हैं। बापदादा तो हर बच्चे को लवली बच्चे समझते हैं, जानते भी हैं, जन्मपत्री हर एक का जानते हैं। परिवार भी क्या कहेंगे? लवली हैं। बापदादा हर बच्चे को एक ही पढ़ाई, एक ही पालना, एक ही वरदान सदा देते हैं। चाहे लास्ट नम्बर भी जानते हैं फिर भी बापदादा किसी भी बच्चे का अवगुण, कमज़ोरी संकल्प में भी नहीं रखते। लाडला है, सिकीलधा है, मीठा-मीठा है.... इसी दृष्टि और वृत्ति से देखते क्योंकि बापदादा जानते हैं इसी वृत्ति और श्रेष्ठ दृष्टि से कमज़ोर महावीर बन जायेगा। ऐसे ही अपने श्रेष्ठ वृत्ति और शुभभावना, शुभकामना द्वारा किसी का भी परिवर्तन कर सकते हो। जब आपने चैलेन्ज किया है कि प्रकृति को भी परिवर्तन करके दिखायेंगे तो क्या आत्माओं का परिवर्तन नहीं कर सकते! प्रकृतिजीत बनते हो तो आत्मा, आत्मा की श्रेष्ठ भावना से, कल्याण की कामना से परिवर्तन नहीं कर सकते हैं ?

अभी नया वर्ष शुरू होने वाला है ना - तो नये वर्ष में सर्व बेहद के ब्राह्मण परिवार के बीच एक दो के प्रति अपने शुभभावना, श्रेष्ठ कामना द्वारा हरेक एक दो के परिवर्तन करने में सहयोगी बनो, चाहे कमज़ोर है, जानते हो इसके संस्कार में यह कमज़ोरी है लेकिन आप स्नेह और सहयोग की शक्ति द्वारा सहयोगी बनो। एक दो को सहयोग का हाथ मिलाओ। इस सहयोग के हाथ मिलाने का दृश्य ऐसा बन जायेगा जैसे हाथ में हाथ स्नेह का मिलाना, सहयोग का मिलाना, माला बन जाये। शिक्षा नहीं दो, स्नेह भरा सहयोग दो। न्यारा नहीं बनो, किनारा नहीं करो, सहारा बनो क्योंकि आपका यादगार विजयमाला है। हर एक मणका, मणके के साथी सहयोगी है तब माला का चित्र बना है। तो सभी बापदादा से पूछते हैं नये साल में क्या करना है? सन्देश देने का कार्य तो बहुत किया, कर रहे हैं, करते रहेंगे। अब सन्देश-वाहकों के सहयोग और स्नेह की रूपरेखा स्टेज पर लाओ। महादानी बनो, अपने गुणों का सहयोगी बनो, बनाओ। ऐसे अपने गुणों का, हैं तो परमात्म गुण लेकिन जो अपने में बनाया है, उस गुण की शक्ति से उन्हों की कमज़ोरी दूर करो। यह कर सकते हैं? कर सकते हैं या मुश्किल है? टीचर्स बताओ, कर सकते हैं? कर सकते हैं या करना ही है? करना ही है? कोई कमज़ोर नहीं रहे, क्योंकि कोटों में कोई है ना! चाहे लास्ट दाना भी है, है तो कोटों में कोई। आपका टाइटिल ही है - मास्टर सर्वशक्तिवान। तो सर्वशक्तिवान का कर्तव्य क्या है? शक्ति की लेन-देन करना। बाप द्वारा मिला हुआ गुण आपस में लेन-देन करो। यही सहयोग की गिफ्ट एक दो में दो। नये वर्ष में एक दो को गिफ्ट देते हैं ना! तो इस वर्ष में एक दो में गुणों की गिफ्ट दो। अगर कल्याण की भावना रखेंगे तो जैसे भाषण करके सन्देश देते हो ना, वाणी द्वारा वैसे अपने कल्याण की भावना द्वारा, कल्याण की वृत्ति द्वारा, कल्याण के वायुमण्डल द्वारा यह गुणों की गिफ्ट दो, शक्तियों की गिफ्ट दो। कमज़ोर को सहयोग देना, यह समय पर गिफ्ट देना है, गिरे हुए को गिराओ नहीं, चढ़ाओ, ऊँचा चढ़ाओ। यह ऐसा है, यह ऐसा है..., नहीं। यह प्रभु प्यार के पात्र है, कोटों में कोई आत्मा है, विशेष आत्मा है, विजयी बनने वाली आत्मा है, यह दृष्टि रखो। अभी वृत्ति, दृष्टि, वायुमण्डल चेंज करो। कुछ नवीनता करनी चाहिए ना! कमज़ोरी देखते, देखो नहीं, उमंग दो, सहयोग दो। ऐसा ब्राह्मण संगठन तैयार करो तो बापदादा विजय की ताली बजायेगा। आप भी बार-बार तालियाँ बजाते हो ना, बापदादा मुबारक हो, बधाई हो, ग्रीटिंग्स हो, उसकी तालियाँ बजायेगा। आप भी साथ में ताली बजायेंगे ना। अभी ताली बजाई तो अच्छा किया लेकिन विश्व के आगे ताली बजे। सबके मुख से यह आवाज निकले, हमारे ईष्ट आ गये। हमारे पूज्य आ गये। लक्ष्य पक्का है ना! पक्का है लक्ष्य, करना ही है? या देखेंगे, प्लैन बनायेंगे! करना ही है, प्लैन क्या, करना ही है। अभी सभी इन्तजार कर रहें हैं। अभी इन्हों का इन्तजार समाप्त करें प्रत्यक्ष हाने का इन्तजाम करें, देखे प्रकृति भी अभी कितनी तंग हो रही है। तो प्रकृति को भी शान्त बना दो। आप प्रत्यक्ष हो जायेंगे तो विश्व शान्ति स्वत: हो जायेगी। अच्छा।

इस बारी भी नये-नये बच्चे बहुत आये हैं। अच्छा है। बापदादा खुश होते हैं कि जो भी कोने-कोने में छिपे हुए कल्प पहले वाले बच्चे हैं, वह पहुँच रहे हैं। अभी पीछे आने वाले भी ऐसा लक्ष्य रखो समय कम है इसलिए तीव्र पुरूषार्थ द्वारा नम्बर आगे ले सकते हो। अभी भी टूलेट का बोर्ड नहीं लगा है, लेट का लगा है। इसलिए जितना पुरूषार्थ करने चाहो उतना आगे बढ़ सकते हो। तो पहले बारी आने वाले हाथ उठाओ। अच्छा। सभी ने, जिन्होंने भी हाथ उठाया है, तीव्र पुरूषार्थ करना है ना! अभी ढीले पुरूषार्थ का समय गया, चलने का गया, अभी उड़ने का समय है। तो डबल लाइट बनके उड़ो। जो भी बनने चाहो, बन सकते हो। उलाहना नहीं देना - बाबा हमको पीछे बुलाया, अभी भी डबल लाइट बनके उड़ सकते हो। इतना उमंग है? जिन्होंने हाथ उठाया, इतना उमंग है? जिसको इतना उमंग है, आगे जाकर ही दिखाना है, वह हाथ उठाओ। बापदादा तो इन्हें एडवांस मुबारक दे रहे हैं। अच्छा।

गुजरात की ही सेवा है, गुजरात वाले ही मिलन मनाने आये हैं:- गुजरात वाले जो भी हैं, चाहे आये हैं, चाहे सेवा में आये हैं, वह हाथ उठाओ। बहुत हैं, बहुत अच्छा। अच्छा चांस लिया है। गुजरात को बापदादा कहते हैं, सिन्धी में कहावत है जो चुल पर वह दिल पर। तो सबसे नजदीक में नजदीक गुजरात है। जो नजदीक होता है ना, उसको कहा जाता है शडपंथ पर है, बुलाओ और पहुँच जाये। तो ऐसे एवररेडी है ना गुजरात, कभी भी बुलायें आ जाओ, तो आ जायेंगे? ऐसे है? परिवार को नहीं देखेंगे क्या करेंगे, आ जायेंगे? एवररेडी हैं। अच्छा है गुजरात, साकार ब्रह्मा के प्रेरणा से स्थापन हुआ है। गुजरात ने गुजरात को निमन्त्रण नहीं दिया, ब्रह्मा बाप ने गुजरात को खोला है। तो गुजरात के ऊपर विशेष ब्रह्मा बाप की नजर पड़ी हुई है। और गुजरात ने पुरूषार्थ भी किया है, सेन्टर अच्छे खुले हैं। कितने सेन्टर हैं? 300 सेवाकेन्द्र, उपसेवाकेन्द्र हैं और 3 हजार गीता पाठशालाये हैं। अच्छा सबसे ज्यादा सेंटर किस जोन के हैं? (बम्बई-महाराष्ट्र) अच्छा। महाराष्ट्र वाले आये हैं ? (आज नहीं आये हैं ) सबसे ज्यादा महाराष्ट्र में हैं गुजरात सेवा तो अच्छी कर रहे हैं। गुजुरात का विस्तार तो अच्छा है। अभी क्या करना है। विस्तार तो है विस्तार तो अच्छा किया है, अभी गुजरात वाले नम्बरवन वारिस तैयार करें। कम से कम जो बड़े सेवाकेन्द्र हैं, जो पुराने वारिस हैं, वह तो हैं ही लेकिन नया कोई वारिस निकालो। चलो एक-एक तो निकालो, क्योंकि माला में मणके वही बनेंगे जो वारिस क्वालिटी होंगे। तो माला तो तैयार करना है ना। 16108 की भी माला बनी हुई है। अभी अगर बापदादा बोले 108 की माला बनाओ, तो बना सकते हो? बन सकती है? दादियाँ बतावें, 108 की माला बन सकती है? (दादीजी ने कहा बन सकती है।) तैयार हैं? 108 की माला तैयार हो गई है? (हाँ बाबा तैयार है) अच्छा लिखकर दिखाना। तैयार है तो बहुत अच्छा, मुबारक है। अच्छा 16 हजार की, आधे तक बनी है? (आधा तो क्या उनसे भी ज्यादा बनी है) अच्छा है ना। देखो गुप्त रूप में बनी है और आपकी दादी ने देख ली है। अच्छा है। अभी आपसे सभी पूछेंगे कि मेरा माला में नाम है? अच्छा है। ऐसी शुभभावना, शुभउम्मीदें तैयार ही कर लेती हैं। अभी सभी ने सुना ना, अपने को चेक करना मैं उस माला में एवररेडी हूँ? अच्छा। और क्या करना है?

कैड ग्रुप:- अच्छा है, यह भी आवाज फैलाने का साधन बहुत अच्छा है क्योंकि प्रैक्टिकल सबूत देखते हैं ना और बिना खर्चे के मैडिटेशन द्वारा ठीक हो जाना, तो सबको बहुत अच्छा लगता है अभा धीरे-धीरे इसकी वृद्धि करते जाओ। सुना है, कर रहे हैं और सफलता भी मिल रही है और भी मिलती रहेगी बाकी बापदादा इस कार्य के लिए निमित्त बनने वालों को मुबारक दे रहे हैं। आफिशियल गवर्मेन्ट तक पहुँच रही है और भी फैलाते रहेंगे तो मेडीटेशन का महत्व बढ़ता जायेगा। बाकी बापदादा को यह विधि पसन्द है। अच्छा।

डबल विदेशी:- डबल विदेशी तो सदा डबल पुरूषार्थ करते होंगे ना! पुराना संसार और पुराने संस्कार का नामोनिशान नहीं रहे, यह है डबल पुरूषार्थ। तो ऐसा डबल पुरूषार्थ चल रहा है ? चलता है ? कंधा तो हिलाओ। जिसका अटेन्शन है इस डबल पुरूषार्थ पर वह हाथ उठाओ। अच्छा-फिर तो प्रत्यक्षता विदेश से होगी। डबल पुरूषार्थ करनेवालों की विजय प्रत्यक्ष हो जायेगी। बापदादा को खुशी है कि डबल फारेनर्स सेवा और पुरूषार्थ दोनों तरफ अटेन्शन दे आगे बढ़ रहे हैं। बढ़ रहे हैं इसकी मुबारक है लेकिन आगे इस अटेन्शन में और भी तीव्रता लाओ। जिस भी सेन्टर पर जायें वहाँ ऐसा अनुभव हो जैसे मधुबन का वायुमण्डल। अब हर एक स्थान ऐसे वायुमण्डल का अनुभव करावे। जैसे मधुबन में कोई भी आता है, प्रभावित होकर ही जाता है किसी भी बात में, ऐसे कोई भी आत्मा आवे, किसी न किसी बात में ऐसे प्रभावित होके जाये जो बार-बार आता ही रहे। आगे बढ़ता रहे। बाकी अटेन्शन है, पुरूषार्थ भी है, लक्ष्य भी है अब प्रैक्टिकल ऐसा प्रभावित हो जो कोई भी आने के बिना, बनने के बिना रह नहीं सके। अच्छा है, हर टर्न में विदेशी आते हैं, इससे भी मधुबन अच्छा सुन्दर लगता है। इन्टरनेशनल हो जाता है ना! विजयी हैं और विजय का तिलक सदा अपने मस्तक पर प्रत्यक्ष दिखाई दे यह और थोड़ा विजय का तिलक स्पष्ट करो। जो भी देखे विजय का चमकता हुआ तिलक दिखाई दे। कितने बार विजयी बने हैं? अनेक बार बने हैं, अभी भी बने हैं, फिर भी बनते रहेंगे। तो दोनों बातों में विजयीभव का वरदान चलन और चेहरे से दिखाई दे। निश्चय और नशा तो है ही! हम नहीं विजयी बनेंगे तो कौन बनेगा, यह नशा है ना ! निश्चय भी है, नशा भी है। अभी एक दो के सहयोगी बन विजय का झण्डा विश्व के आगे लहराओ। क्योंकि डबल विदेशियों के संस्कार हैं जो करना है वह पूरा करना है, अधूरा नहीं। तो इसमें भी सम्पन्न बनना ही है। ठीक है। पक्का है ना! कच्चा तो नहीं ना! अच्छा। आजकल विश्व में दो बातें विशेष चलती हैं - एक एक्सरसाइज और दूसरा भोजन के ऊपर अटेन्शन। तो आप भी यह दोनों बातें करते हो? आपकी एक्सरसाइज कौन सी है? शारीरिक एक्सरसाइज तो सब करते हैं लेकिन मन की एक्सरसाइज अभी-अभी ब्राह्मण, ब्राह्मण सो फरिश्ता और फरिश्ता सो देवता। यह मन्सा ड्रिल का अभ्यास सदा करते रहो। और शुद्ध भोजन, मन का शुद्ध संकल्प। अगर व्यर्थ संकल्प, निगेटिव संकल्प चलता है तो यह मन का अशुद्ध भोजन है। तो मन में सदा शुद्ध संकल्प रहे, दोनों करना आता है ना! जितना समय चाहो उतना समय शुद्धसंकल्प स्वरूप बन जाओ। अच्छा।

चारों ओर के परमात्म प्यार के अधिकारी विशेष आत्माओं को, सदा एक दो के सहयोगी बनने वाले बाप के स्नेही और सहयोगी आत्माओं को, सदा विजयी है और विजय का झण्डा विश्व में फैलाना है, इस लक्ष्य को प्रैक्टिकल में लाने वाले विजयी बच्चों को, सदा इस पुराने संसार और संस्कार के आकर्षण से परे रहने वाले बाप समान बच्चों को दिलाराम बाप का दिल से यादप्यार और नमस्ते।

दादियों से:- (दादीजी से) अच्छी खुशखबरी सुनाई। (मोहिनी बहन से) अच्छा है मुक्त होकर आ गई। सहज हो गया ना ! सब ब्राह्मणों की दुआयें भी थी। सूली से काँटा करके आ गई। बापदादा खुश है, आपकी मन्सा शक्ति का प्रमाण अच्छा है। (दादीजी से) बहुत अच्छा पार्ट बजा रही हो। आपको देखकर सभी को फरिश्ता लाइफ याद आती है। न्यारा और प्यारा।

गुजरात की मुख्य 13 बहिनों से:- अच्छे-अच्छे महावीर हैं। महावीरों का काम है विजयी बन विजयी बनाना। तो सभी अच्छी सेवा कर रहे हैं और आगे भी सेवा होती रहेगी। बापदादा बच्चों के उमंग-उत्साह को देख खुश होते हैं। अच्छा गुजरात में फैला रहे हो। और भी आगे फैलाते रहेंगे। बापदादा को सभी बच्चे आशाओं के दीपक लग रहे हैं। अच्छा है। संगठन भी अच्छा है। एक-एक की विशेषता है। अच्छा। खुश, खुशी बांटने वाले। (सरला दीदी पूछ रही हैं, दादी ने माला में किसको रखा है) आप क्या समझती हो? हम तो होंगे ही ना, ऐसे समझती हो। थोड़ा बहुत एक दो को सहयोग दे और जो कुछ भी रहा हुआ है, वह खत्म हो जायेगा। सब बाप समान बनने वाले ही हैं। (नवीनता क्या करें) सुनाया ना - एक एक सेंटर कम से कम एक वारिस तो तैयार करे। तो इस वर्ष वह लेकर आना, 21 वारिस तो लेके आना। यह शुरू करो। पहला नम्बर आओ। सभी हाँ कर रहे हैं। वारिस की क्वालिफिकेशन जानते हैं ना। यह सब बाबा के ही बनायेंगे ना, अपना तो बनायेंगी नहीं। अच्छा।